शनिवार, 11 जनवरी 2014

बाँसुरी चली आओ - डॉ कुमार विश्वास Kumar Vishwas (Bansuri Chali Aao)




तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|

औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|
तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने|

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है|
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|
कुमार विश्वास आज के हिन्दी कवि सम्मेलनो के  सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाले कवि है और अन्तर्जाल पर उनकी लोकप्रियता नये कीर्तिमान कायम कर रही है. उनके बारे मे और जानकारी उनके अन्तर्जाल पते  (www.kumarvishwas.com) पर ली जा सकती है.